दहेज प्रथा – एक सामाजिक अभिशाप
संकेत-बिंदु : • प्रस्तावना • दहेज का स्रोत • दहेज प्रथा झूठी प्रतिष्ठा का प्रतीक • दहेज प्रथा के दुष्परिणाम
यदि किसी प्रथा या परंपरा के उद्भव और विकास का अध्ययन करें तो ज्ञात होता है कि प्रथाओं या परंपराओं का आरंभ किसी श्रेष्ठ उद्देश्य को लेकर होता है; लेकिन कालांतर में वह प्रथा या परंपरा ऐसी रूढ़ि बन जाती है कि उससे मुक्ति पाना भी असंभव सा हो जाता है। ऐसी ही एक प्रथा है- 'दहेज-प्रथा'। सामान्य रूप से कन्या-पक्ष की और से वर पक्ष को दान, उपहार तथा पुरस्कार स्वरूप वस्तु या अर्थ रूप में जो दिया जाता है, उसे 'दहेज' कहा जाता है।
दहेज प्रथा का मूल स्रोत क्या है यह कहना तो कठिन है; लेकिन यह प्रथा भारत में किसी न किसी रूप में विद्यमान अवश्य रही है। भारत में वैदिक काल में भी यह प्रथा प्रचलित थी। तुलसीदास की रचना रामचरितमानस में भी जनक द्वारा दहेज प्रदान करने का वर्णन आता है।
वर्तमान भारतीय समाज में दहेज झूठी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। अर्थ की प्रधानता होने के कारण इस क्षेत्र में प्रतियोगिता इतनी बढ़ गई है कि यह प्रथा एक कुत्सित और घृणित रूप धारण कर बैठी है। पहले दहेज कन्या के पिता की इच्छा पर निर्भर करता था लेकिन अब यह वर पक्ष वालों की विवाह से पूर्व की शर्तों के शिकंजे में फँस गया है। वर-पक्ष के लिए दहेज सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। अतः वह विवाह संबंध स्थापित करते समय केवल कन्या-पक्ष की आर्थिक स्थिति को ही ध्यान में रखता है। संपन्न वर्ग तो विवाह के सौदे आसानी से निभा लेता है; लेकिन मध्यम और निम्न वर्ग दहेज के अजगर की कुंडली में छटपटाता है अन्यथा कन्या के सुखद भविष्य के लिए चिताकुल रहना पड़ता है.
दहेज़ प्रथा पर निबंध - Dowry System Essay in Hindi
यथासामर्थ्य दहेज देने के बाद भी माता-पिता के मन में पुत्री के सुखद भविष्य के संबंध में जो शंकाएँ बनी रहती हैं, वे निर्मूल नहीं हैं। दहेज न दे पाने अथवा कम दे पाने की स्थिति में कन्या-पक्ष को तो अपमानित होना ही पड़ता है; कन्या का जीवन भी जोखिम में पड़ जाता है। दहेज के कारण एक कन्या को क्या कुछ नहीं सहना पड़ता? आए दिन समाचार पत्रों में हम पढ़ते हैं- 'एक युवती द्वारा छत से कूदकर आत्महत्या', 'नव-विवाहिता ने मिट्टी का तेला छिड़ककर आग लगा ली', 'युवती ने कुएँ में छलाँग लगा ली' आदि। इन दुर्घटनाओं के पीछे प्राय: दहेज की माँग हो कारण होता है।
सभी लोग यह अनुभव करते हैं कि दहेज प्रथा ने अब तक एक सामाजिक बुराई का रूप धारण कर लिया है। इस कुप्रथा से समाज को मुक्ति प्रदान करने हेतु अनेक भाषण-मालाओं का आयोजन किया जाता है, प्रतिज्ञा पत्रों पर इसके विरोध में हस्ताक्षर अभियान चलाए जाते हैं, समय-समय पर कानून में संशोधन तथा परिवर्तन किए जाते हैं; लेकिन परिणाम फिर भी शून्य ही देखे जा रहे हैं। इससे यह स्पष्ट है कि कानूनों, भाषणों तथा प्रतिज्ञा-पत्रों पर हस्ताक्षर करने आदि से इस समस्या से मुक्ति नहीं पाई जा सकती। इसके लिए अंत:प्रेरणा चाहिए।
दहेज प्रथा पर निबंध | Dahej Pratha Par Nibandh Hindi Me
दहेज-प्रथा की कुरीतियों को रोकने के उद्देश्य से 'दहेज-निषेध' अधिनियम पारित किया गया। महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार भी दिया गया। इतना होते हुए भी दहेज का लेन-देन रुक नहीं सका। इसीलिए दहेज को एक दंडनीय अपराध घोषित करने की आवश्यकता प्रतीत हुई और 'दहेज-निषेध' अधिनियम बनाया गया। इस अधिनियम के अनुसार, दहेज लेने या देने वाला या इसके लिए प्रोत्साहित करने वाला व्यक्ति कठोर से कठोर दंड का अधिकारी है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि इस कुप्रथा के विरुद्ध प्रभावी जनमत जाग्रत किया जाए। विवाह के योग्य आयु की सीमा का कठोरता से पालन कराया जाए ताकि युवक-युवती दहेज के कुपरिणामों को समझ सकें। अंतर्जातीय तथा अंतर्राज्यीय विवाह-संबंधों को बढ़ावा दिया जाए तथा महिलाओं को उचित शिक्षा दी जाए ताकि वे आर्थिक गुलामी से मुक्त हो सकें और दहेज की कुप्रथा से लोहा ले सकें।
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